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कल्परम्भ | Kalparambha

कल्परम्भ | Kalparambha

कल्परम्भ का मतलब
नवरात्रि में माँ दुर्गा के नौ रूपों की नौ दिनों तक आराधना होती है। नवरात्रि के ही समय दुर्गा पूजा भी होती है। मान्यतानुसार षष्ठी तिथि से ही दुर्गा पूजा की विधि-विधान से पूजा-आराधना शुरू कर दी जाती है। कहा जाता है कि षष्ठी का यह दिन वहीं दिन है जब देवी दुर्गा धरती पर आती हैं। ऐसे में षष्ठी तिथि के दिन ही कल्पारंभ, बिल्व निमंत्रण पूजन और अधिवास परंपरा निभाई जाती है।
ऐसा माना जाता है कि सभी देवी देवता एवं मां दुर्गा दक्षिणायन काल से ही नींद में चले जाते हैं। ऐसे में हिंदू धर्म के मान्यता अनुसार बोधन परंपरा के माध्यम से उन्हें नींद से जगाया जाता है। बोधन परंपरा जिसका अर्थ होता है कि मां दुर्गा को नींद से जगाना। बोधन के इस कार्य को हिन्दू धर्म में अकाल बोधन के नाम से भी जाना जाता है। बोधन के पश्चात देवी देवताओं की आमन्त्रण की परंपरा निभाई जाती है। देवी दुर्गा की आरती और वंदना भी की जाती है। बोधन की परम्परा सूरज ढलने के बाद की जाती है। यह प्रक्रिया नव दिनों तक चलती है। इसके उपरांत हिन्दू ग्रंथो के अनुसार द्वादश के दिन रावण दहन का भी नियम माना जाता है।

कल्परम्भ पूजन
कल्परम्भ यानि काल प्रारंभ की पूजा सबसे पहले भगवान श्रीराम ने की थी। माना जाता है कि भगवान श्रीराम ने रावण का वध करने से पहले मां दुर्गा को नींद से जगाया और उन्हें मनाया इसीलिए ही आज तक भी दशहरा से पहले मां दुर्गे की विशेष पूजा करके उन्हें नींद से जगाया जाता है। जिसे काल प्रारंभ कहते हैं। काल प्रारंभ की पूजा सुबह जल्दी की जाती है। इस दौरान कलश में जल भरकर बिल्व के पेड़ के नीचे रखा जाता है और इसे मां देवी दुर्गा को समर्पित किया जाता है।
ऐसा माना जाता है कि इस दिन मां दुर्गा पृथ्वी पर आई थी और उन्हें समय से पहले नींद से जगा गया था इसलिए कल्परम्भ को अकाल बोधन भी कहते हैं। कल्परम्भ की पूजा अश्र्विन नवरात्र के षष्ठी को की जाती है। जिसके बाद तीन दिन तक लगातार मां दुर्गा की पूजा अर्चना की जाती है। इन तीनों दिनों मां दुर्गा को अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है।

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