तुला संक्रांति की कथा | Tula Skranti Ki Katha
तुला संक्रांति की कथा
प्राचीन भारतीय साहित्य स्कंद पुराण में कावेरी नदी की उत्पत्ति से संबंधित कई कहानियां शामिल है। इसमें से एक कहानी विष्णु माया नामक एक लड़की के बारे में है। जो भगवान ब्रह्मा की बेटी थी जो कि बाद में कावेरा मुनि की बेटी बन गई थी। कावेरा मुनि ने ही विष्णु माया को कावेरी नाम दिया था। अगस्त्य मुनि को कावेरी से प्रेम हो गया और उन्होंने उससे विवाह कर लिया था। एक दिन अगस्त्य मुनि अपने कामों में इतने व्यस्त थे कि वे अपनी पत्नी कावेरी से मिलना भूल जाते हैं। उनकी लापरवाही के कारण, कावेरी अगस्त्य मुनि के स्नान क्षेत्र में गिर जाती है और कावेरी नदी के रूप में भूमि पर उद्धृत होती हैं। तभी से इस दिन को कावेरी संक्रमण या फिर तुला संक्रांति के रूप में जाना जाता है।
तुला संक्रांति की पूजा विधि
- तुला संक्रांति के दिन देवी लक्ष्मी और देवी पार्वती का पूजन करें।
- इस दिन देवी लक्ष्मी को ताजे चावल अनाज, गेहूं के अनाजों और कराई पौधों की शाखाओं के साथ भोग लगायें।
- देवी पार्वती को सुपारी के पत्ते, चंदन के लेप के साथ भोग लगायें।
- तुला संक्रांति का पर्व अकाल तथा सूखे को कम करने के लिए मनाया जाता है, ताकि फसल अच्छी हो और किसानों को अधिक से अधिक कमाई करने का लाभ प्राप्त हो।
- कर्नाटक में नारियल को एक रेशम के कपड़े से ढका जाता है और देवी पार्वती का प्रतिनिधित्व मालाओं से सजाया जाता है।
- उड़ीसा में एक और अनुष्ठान चावल, गेहूं और दालों की उपज को मापना है ताकि कोई कमी ना हो।