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वत्स द्वादशी/बछबारस व्रत कथा | Vatsa Dwadashi/Bachh Baras Vrat Katha

वत्स द्वादशी/बछबारस व्रत कथा | Vatsa Dwadashi/Bachh Baras Vrat Katha

बछबारस (गोवत्स द्वादशी) भाद्रपद मास में द्वादशी तिथि को उत्साह के साथ मनाया जाने वाला त्यौहार हैं। सुहागिन स्त्रिया सन्तान प्राप्ति के लिए यह व्रत करती हैं। गाय में समस्त देवता निवास करते हैं। गौ के श्रींगो के मध्य ब्रह्मा, ललाट में भगवान शंकर, दोनों कर्णो में अश्वनी कुमार, नेत्रों में चन्द्रमा और सूर्य तथा कक्ष में साध्य देवता, ग्रीवा में पार्वती, पीठ पर नक्षत्र गण, ककुद में आकाश, गोबर में लक्ष्मी तथा स्तनों में जल से परिपूर्ण चारों समुन्द्र निवास करते हैं।

बछबारस (गोवत्स द्वादशी) की कहानी (1)

भाद्रपद मास में द्वादशी को बछबारस का व्रत आया। इन्द्रलोक से अप्सराये , इन्द्राणी गौ का पूजन करने पृथ्वी पर आई , तो उन्होंने हरी हरी घास चरती एक सफेद गाय देखी। प्रसन्न मन से गाय की पूजा करने लगी परन्तु गाय पांव से लात व पूछ से मारने लगी। तब इन्द्राणी ने और अप्सराओ ने हाथ जोड़ विनती करी की हे माँ हमसे जो भी अपराध हुआ उसे क्षमा करे तब गाय माता ने प्रसन्न हो उनसे कहा मेरी अकेली का पूजन मत करो मेरे साथ मेरे बछड़े का भी पूजन करो। इन्दारिणी व अप्सराओ ने पिली मिटटी से बछड़ा बनाया गाय के पास बैठाया और अमृत के छीटे दिए और बछड़े में प्राण आ गये और बछड़ा गाय का दूध पीने लगा। इन्द्राणी व अप्सराओ ने गाय का पूजन किया। गाय जब घर आई तो ग्वालन ने कहा तू बछडा कहा से लाई मेरे तो पुत्र नहीं हैं जब मुझे पुत्र देगी तभी में तुम्हे घर के अंदर आने दूंगी जब गाय माता ने कहा तुम मुझे आने दो अगली बछबारस को मैं तुम्हे पुत्र दूंगी।
अगले साल भाद्रपद मास में बछबारस का व्रत आया गाय जंगल में घास चरने गई इन्द्राणी पूजन के लिए आई तो गाय माता ने कहा अगले साल मुझे पुत्र दिया था इस बार मेरी मालकिन (ग्वालन) को पुत्र दो। अप्सराओ व इन्द्राणी ने पीली मिटटी का बच्चा बनाया और पालना बनाया पलने को गाय की सींगो के बांधा। पालने में बच्चे को लिटाया अमृत के छीटे से जीवन दिया गाय की पूजा कर वरदान दिया की आज के दिन जो सुहागिन श्रद्धा भक्ति से तेरा व्रत पूजन करेगी उसके सभी मनोरथ पूर्ण होंगे।
गाय बच्चा लेकर घर आई। ग्वालन ने गाय की पूजा कर श्रद्धा भक्ति से सारी नगरी में कहलवा दिया सब को भाद्रपद मास की गोवत्स द्वादशी का व्रत और पूजन करना चाहिए इससे समस्त मनोकामनाए पूर्ण होती हैं।
हे गाय माता जिस प्रकार ग्वालन को पुत्र (सन्तान) दिया वैसे सबको सन्तान देना।

बछबारस (गोवत्स द्वादशी) की कहानी (2)

दो सास बहूँ थी। सास को जंगल में गाय चराने जाना था। उस दिन भाद्रपद मास की बछबारस थी बहूँ से बोली में गाय चराने जंगल जा रही हूँ तुम गेहुले जौले (गेहू , जौ) को उबाल लेना। गेहुले जौले बछड़े के नाम थे। बहूँ चिंता में पड गई और डरते हुये सोचा अभी सासु जी आ जाएगी तो गेहुले जौले (बछड़ो) को काटकर उबालने रख दिया। गाय चराकर सासुजी घर आई बहूँ से बोली बहूँ बछड़ो को छोड़ आज बछबारस हैं पहले गाय बछड़े की पूजा करेंगे।
बहूँ डर के मारे कापंने लगी भगवान से प्रार्थना करने लगी की हे भगवान ! मेरी लाज रखना। बछबारस माता मेरी लाज रखना विनती करने लगी। विनती सुन बछबारस माता की कृपा हुई और हांडी तौड कर गाय के बछड़े आ गये। बछड़े के गले में हांड़ी का टुकड़ा रह गया सास बोली बहूँ ये क्या हैं ? तब बहूँ ने सासुजी को सारी बात बता दी और कहा सासुजी बछ्बारस माता ने मेरी लाज रख ली।
भगवान ने मेरा सत रखा बछड़ो को जीवन दान दिया इसलिए बछबारस के दिन कुछ भी काटा हुआ गेहूं , जौ नहीं खाना चाहिये। दूध देने वाली गाय बछडा एक ही रंग का हो तो अधिक शुभ होता हैं।
हे बछबारस माता ! जैसे सास बहूँ की लाज रखी वैसे सबकी रखना |

बछबारस (गोवत्स द्वादशी) की कहानी (3)

एक गाँव में भीषण अकाल पड़ गया। वहा एक धर्मात्मा साहूकार रहता था। उसने एक तालाब बनवाया पर उसमें पानी नही आया। साहूकार ने विद्वान् पंडितो से पूछा – तालाब में पानी नही आने का क्या कारण हैं ? कृपया कोई उपाय बतलाये। तब पंडितो ने कहा इसमें एक बालक की बली देने से पानी आ जायेगा। साहूकार चिंता में पड गया की अपना बालक कौन देगा तो साहूकार के दो पोते थे उसने सोचा एक पोते की बली दे देंगे गाँव में पानी आ जायेगा। परन्तु बहूँ से कैसे बात करे। साहूकार ने बहूँ को पीहर भेज दिया और छोटे पोते को अपने पास रख लिया। बहूँ पीहर चली गई और पीछे से छोटे पोते (बछराज) की बलि दे दी। तालाब लबालब भर गया।
साहूकार ने बड़ा यज्ञ किया। सभी को बुलवाया परन्तु बहूँ को नहीं बुलवाया। बहूँ को सुचना मिलते ही वह अपने भाई के साथ आई। बहूँ ने अपने भाई से कहा इतने काम में भूल गये होंगे अपने ही घर जाने में कैसी शर्म। बहूँ के आते ही सास के साथ बछबारस की पूजा करने तालाब पर चली गई। साहूकार साहुकरनी मन ही मन बछबारस माता से प्रार्थना करने लगे की हे माता ! हमारी लाज रखना बहूँ को उसका बेटा कहा से देंगे। तालाब और गाय की पूजा कर तालाब का किनारा खंडित कर बोली “ आवो मेरे बेटो लड्डू उठाओ “ सासुजी मन ही मन विनती करती रही। तालाब की मिटटी में लिपटा हुआ बछराज आया हंसराज को भी बुलाया।
पूजा सम्पन्न कर बहूँ बोली सासुजी ये सब क्या हैं ? सासू जी ने बहूँ को सारी बात बताई और कहा बछबारस माता ने हम सब की लाज रख ली। इसलिए बछबारस की पूजा में महिलाये गाय के गोबर से तालाब बनाकर पूजा कर किनारा खण्डित कर उस पर लड्डू रख कर अपने बेटे से उठवाती हैं।
हे बछबारस माता ! जैसे साहूकार साहुकारनी की लाज रखी वैसे सबकी रखना।

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