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दृष्टि बदलो | Drashti Badlo

दृष्टि बदलो | Drashti Badlo

सौराष्ट्र की एक कहानी है। वर्षा ऋतु में तांगे के घोडे की हरी घास खाने ही आदत पड़ गई है। ग्रीष्म-शीत ऋतु में भी हरी घास माँगे, सुखी घास नहीं खाता। नहीं खाए तो काम न करें। काम न करे तो पैसे न आएँ। पैसे न आएँ तो गृहस्थी कैसे चले?
ग्रीष्म-शीत ऋतु में हरी घास मिलती नहीं थी। ताँगे वाला सोच में पड गया, अब क्या करें? इतने में एक सन्त मिल गये। उसने सन्त से कहा,”महाराज, मेरे घोडे को हरी घास खाने की आदत पड़ गई है। ग्रीष्म-शीत ऋत में हरी घास मिलती नहीं है तो मैं क्याँ करूँ?”
सन्त ने कहा, “एक काम कर। घोडे को हरे चश्मे पहना दो। सूखी घास भी हरी नजर आयेगी और खायेगा।”
द्रष्टि बदल जाये तो दुःख सुख हो जाये। यह कृपा सन्त कर सकते हैं।

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