गुप्तदान | Guptdan
भारत में किसी मन्दिर का जीर्णोद्धार हो रहा था। पचास हजार रुपयों की जरूरत थी। ट्रस्टी गये किसी बडे व्यापारी के पास। वह दानशील है। दस बजे का समय। सेठ पेढी में आ कर बैठे थे। “शेठजी! लक्ष्मीनारायण का मंदिर जीर्ण हो गया है। उसके उद्धार के लिए पचास हजार रुपयों की जरूरत है। आपका नाम सुनकर आये है।”
“कितने रुपयों की जरूरत है?”
“पचास हजार रुपयों की।”
“लक्ष्मीनारायण के मन्दिर के लिए?”
“हाँ।”
“पचास हजार में हो जायेगा?”
“हाँ।”
“मुनीमजी! चेकबुक दो।” ट्रस्टी हैरान रह गये। ओह! कमाल हो गया। सीधा पचास हजार का चेक! ट्रस्टी की आँखों में आंसू आ गये कि कर्ण का जन्म हुआ है। ऐसा दानवीर दुनिया में नहीं देखा। एक भी सवाल नहीं। फक्त किसका मंदिर है? कितने रुपये चाहिए? चेक दे दिया। धन्य है तेरी दानवीरता को! ट्रस्टी खुश हो गये।
पौने ग्यारह बजे बैंक गये। ट्रस्टीओ ने ग्यारह बजे चेक प्रस्तुत किया। बैंक कर्मचारी ने चेक देखकर वापस कर दिया। इसमें हस्ताक्षर नहीं है। ट्रस्टीयों ने सोचा कि जल्दी में सेठ हस्ताक्षर करने भूल गये होंगे।
वापस आये और कहा, “सेठजी! इसमे हस्ताक्षर करने बाकी रह गये है।”
‘शेठजी बोले, “मैं नाम नहीं लिखता हूँ। मेरे सभी दान गुप्तदान होते है ।
यह है गुप्तदान की होशियारी!