सद्गृहस्थ | Sadgrahsth
स्वामी विवेकानंदजी ऐसे ही संत थे, जिन्होंने परदेश की जमीन पर भारतीय संस्कृति का ध्वज लहराया। गुरु की आज्ञा से वे अमेरिका गये। वहाँ उन्हें कोई पहचानता नहीं था। भगवे वेश में वे अमेरिका के बंदरगाह पर उतरे और शहर में प्रवेश किया। रास्ते पर एक अमेरिकन नवदम्पति जा रही था। उसके पास से विवेकानंदजी निकले। उनका वेश देखते ही अमेरिकन महिला ने मशखरी की : “देखा ! सद्गृहस्थ जा रहा है।’
विवेकानंदजी ने यह वाक्य सुन लिया और वे वहीं खड़े रहे।
विवेकानंदजी ने महिला से पूछा, “आपने मुझे सद्गृहस्थ कहा ?” महिला ने माफी माँगी।
विवेकानंदजी ने कहा, “मुझे एक बात स्पष्ट करनी है। मुझे भारतीय संस्कृति के विषय में आपसे कुछ बात करनी है। आपके यहाँ सद्गृहस्थ दर्जी बनाते है, हमारे यहाँ सद्गृहस्थ संस्कार बनाते है ।” महिला आश्चर्य से बोली, “किस तरह ?” विवेकानंदजी ने कहा, “आपके यहाँ कुर्ता पहनने वाले व्यक्ति सद्गृहस्थ कहलाते है जब कि हमारे यहाँ सद्गुण से आदमी सद्गृहस्थ कहलाता है।”
दम्पति ने विवेकानंदजी के चरणस्पर्श किये और अपने घर ले गये।
हमारे यहाँ पश्चिमी असर से लोग विपरीत मार्ग की ओर जा रहे है।