मंगल प्रदोष व्रत कथा | Mangal Pradosh Vrat Katha
भौम प्रदोष जिसे मंगल प्रदोष कहा जाता है हर माह शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मंगलवार के दिन पड़ता है। त्रयोदशी के मंगलवार को आने वाला यह व्रत भक्तों को बिमारियों से निजात दिलाता है। साथ ही भक्तों को शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रखता है।
एक नगर में वृद्धा अपने मंगलिया नामक पुत्र के साथ रहा करती थी जो नियमों की बड़ी पक्की थी। उस वृद्धा की हनुमान जी में बहुत आस्था थी और वे हर मंगलवार कड़े नियमों का पालन करती थी। मंगलवार के दिन वह न तो अपना घर लीपती थी और न ही मिटटी को खोदा करती। वृद्धा को व्रत करते हुए भी बहुत समय बीत चुका था।
वृद्धा की श्रद्धा-भक्ति देख हनुमान जी ने उसकी परीक्षा लेने का मन बनाया। परीक्षा लेने के उद्देश्य से वे साधू का भेष धारण कर वृद्धा के घर आ पहुंचे। फिर वे कहने लगे कि यहाँ कोई हनुमान भक्त है जो मेरी सहायता करे? साधू की आवाज़ को सुन वह वृद्धा घर के बाहर निकल आई और बोली आज्ञा महाराज ! मैं आपकी किस तरह से सहायता कर सकती हूँ? साधु भेष धारण किये हनुमान जी वृद्धा से बोले कि मैं बहुत भूखा हूँ, मुझे भोजन कराओ। तू यह जमीन लीप दे।
साधु की बात सुनकर वृद्धा बड़ी दुविधा में पड़ गई क्योंकि नियम के अनुसार वह हर मंगलवार को जमीन नहीं लीपा करती। कुछ देर सोचने के बाद साधु के सामने हाथ जोड़कर बोली महाराज! यह कार्य तो मैं नहीं कर सकती कृपया आप मुझे कोई दूसरा कार्य करने की आज्ञा दे दीजिये। उसे मैं किसी भी हालत में पूर्ण करुँगी।
इसके बाद साधु का भेष धारण करे हनुमान जी ने तीन बार प्रतिज्ञा की और फिर कहा कि तू! अपने पुत्र को बुला मैं उसकी पीठ पर आग जलाकर भोजन करना चाहता हूँ। साधु के मुख से इस तरह की बात को सुन वृद्धा के होश उड़ गए। उसके सोचने समझने की क्षमता खत्म हो गई पर दुर्भाग्यवश वह साधु की आज्ञा मानने के लिए प्रतिज्ञाबद्ध थी। अपनी प्रतिज्ञा के चलते उसने अपने पुत्र मंगलिया को बुलाया और साधु को दे दिया।
वृद्धा की प्रतिज्ञाबद्धता देख हनुमान जी इतनी आसानी से हार मानने वालों में से नहीं थे। उन्होंने वृद्धा की और प्रतीक्षा लेनी चाही। इसके लिए उन्होंने वृद्धा के हाथों से ही मंगलिया को पेट के बल लिटवाया और साथ ही पीठ पर आग भी जलवाई। अपने बेटे की पीठ पर आग जलाने के बाद वह वृद्धा बड़े ही दुःखी मन से घर के अंदर चली गई।
कुछ समय बाद साधु ने वृद्धा से कहा कि अपने बेटे को बुलाओ ताकि वह भोजन का भोग ले। साधु की इस बात को सुनकर पहले तो वृद्धा को यकीन नहीं हुआ। वृद्धा ने रोते-रोते अपने आंसू पौंछे और बोली आप मुझे उसका नाम लेकर कष्ट न दें। इसके बावजूद साधु नहीं माने और वृद्धा ने मंगलिया को आवाज लगा ही दी। अपने पुत्र को जीवित देखकर वृद्धा बहुत प्रसन्न हुई और वह साधु के चरणों में गिर पड़ी। इसके बाद हनुमान अपने वास्तविक रूप में प्रकट हुए और वृद्धा को दर्शन दिए। इस तरह मंगल प्रदोष के दिन हनुमान जी के दर्शन पाकर वृद्धा का जीवन सफल हो गया।