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नवपत्रिका पूजा | Navpatrika Pooja

नवपत्रिका पूजा | Navpatrika Pooja

नवपत्रिका पूजा महत्त्व
नवपत्रिका को कोलाबोऊ पूजा भी कहते है, साथ ही इसे नबपत्रिका तरह से भी बोला जाता है। इसका कारण यह है कि गणेश जी की पत्नी का नाम कोलाबोऊ था, लेकिन सच्चाई में इनका गणेश जी के साथ कोई रिश्ता नहीं था। इसे ही पुरानों के अनुसार नवपत्रिका कहा जाता है। यह अनुष्ठान किसानों द्वारा भी किया जाता है, ताकि उन्हें अच्छी फसल मिले। ये लोग किसी प्रतिमा की पूजा नहीं करते है, बल्कि प्रकति की आराधना करते है। शरद ऋतू के दौरान, जब फसल काटने वाली होती है, तब नवपत्रिका की पूजा की जाती है। ताकि कटाई अच्छे से हो सके।
इसके अलावा बंगालियों एवं उड़ीसा के लोगों द्वारा दुर्गा पूजा के समय नौ तरह की पत्तीओं को मिलाकर दुर्गा जी की पूजा की जाती है।

नवपत्रिका या नवापत्रिका –
नवपत्रिका में जो नौ पत्ते उपयोग होते है, हर एक पेड़ का पत्ता अलग अलग देवी का रूप माना जाता है। नवरात्रि में नौ देवी की ही पूजा की जाती है। नौ पत्ती इस प्रकार है- केला, कच्वी, हल्दी, अनार, अशोक, मनका, धान, बिलवा एवं जौ।

  • केला – केला का पेड़ और उसकी पत्ती ब्राह्मणी को दर्शाते है।
  • कच्वी – कच्वी काली माता का प्रतिनिधित्व करती है। इसे कच्ची भी कहा जाता है।
  • हल्दी – हल्दी की पत्ती दुर्गा माता का प्रतिनिधित्व करती है।
  • जौ – ये कार्त्तिकी का प्रतिनिधित्व करती है।
  • बेल पत्र – वुड एप्पल या बिलवा शिव जी का प्रतिनिधित्व करता है, इसे बेल पत्र या विलवा भी कहते है।
  • अनार – अनार को दादीमा भी कहते है, ये रक्तदंतिका का प्रतिनिधित्व करती है।
  • अशोक – अशोक पेड़ की पत्ती सोकराहिता का प्रतिनिधित्व करती है।
  • मनका – मनका जिसे अरूम भी कहते है, चामुंडा देवी का प्रतिनिधित्व करती है।
  • धान – धान लक्ष्मी का प्रतिनिधित्व करती है।

नव-पत्रिका पूजा कथा
कोलाबोऊ को भगवान गणेश जी की पत्नी माना जाता है। हालाँकि इस बात को लेकर अलग-अलग मत हैं। इसके अलावा नव-पत्रिका पूजन से संबंधित एक अन्य कथा भी है जिसके अनुसार बताया जाता है कि, कोलाबोऊ जिसे नव-पत्रिका भी कहते है, माँ दुर्गा की बहुत बड़ी भक्त थी। कोलाबोऊ देवी के नौ अलग अलग रूप के पेड़ के पत्तों से उनकी पूजा किया करती थी।
महासप्तमी की पूजा महास्नान के बाद शुरू की जाती है। इसे कोलाबोऊ स्नान के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन महास्नान का बहुत महत्व होता है। मान्यता है कि इस दिन जो कोई भी महास्नान में भाग लेता है माँ दुर्गा की असीम कृपा उनपर सदैव बनी रहती है।

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