गणपति की कथा | Ganpati Ki Katha
एक बार भगवान गणेश बाल रूप में चुटकी भर चावल और चम्मच में दूध लेकर पृथ्वी लोक में निकले. वे सबको अपनी खीर बनाने को कहते जा रहे थे। पर सबने उनकी बात को अनदेखा किया। इसी दौरान एक गरीब बुढ़िया ने उनकी खीर बनाना स्वीकार कर एक भगोना चूल्हे पर चढ़ा दिया। इस पर गणेश जी ने घर का सबसे बड़ा बर्तन चूल्हे पर चढ़ाने को कहा। बुढ़िया ने बाल लीला समझते हुए घर का बड़ा भगोना उस पर चढ़ा दिया। कुछ देर में ही एक चमत्कार हुआ।
गणेशजी के दिये चावल और दूध बढ़ गए और पूरा भगोना उससे भर गया। इसी बीच गणेश जी नहाने के बाद खीर खाने की बात कहते हुए वहां से चले गए। पीछे से बुढ़िया के पोते- पोती आए तो भूख लगने पर बुढ़िया ने उन्हें वह खीर खिला दी। खीर बनते देख रही पड़ोसन को भी बुढ़िया ने कटोरा भरकर खीर दे दी। बेटे की बहू ने भी चुपके से एक कटोरा खीर खाने के साथ एक कटोरा खीर छिपा दी।
आजा रे गणेस्या खीर खा ले
इसके बाद भूख लगी तो बुढ़िया ने भी खाने के लिए खीर हाथ में ले ली और बोली, “आजा रे गणेस्या खीर खा ले।” तभी गणेश जी वहां पहुंच गए और बोले कि मैंने तो खीर पहले ही खा ली। जब बुढ़िया ने पूछा कि कब खाई तो वे बोले कि जब तेरे पोते-पोती, पड़ोसन व बहू ने खाई तभी मेरा पेट भर गया।
इसके बाद जब बुढ़िया ने बाकी बची खीर के उपयोग के बारे में पूछा तो गणेश जी ने उसे नगर में बांटने को कहा। जब बुढ़िया ने खीर बांटी तो राजा को भी इसका पता लग गया। इस पर उसने बुढ़िया को अपने दरबार में बुला लिया। सारा माजरा जानकर उसने बुढ़िया का खीर का भगोना अपने पास मंगा लिया। पर राजा के महल में जैसे ही वह पहुंचा तो उसमें कीड़े- मकोड़े व जहरीले जानवर गिर गए।
यह देख राजा ने वह बर्तन वापस बुढ़िया को दे दिया जो उसके घर ले जाते ही वापस पहले जैसा हो गया। इसके बाद बुढ़िया ने फिर गणेशजी से बची हुई खीर के उपयोग के बारे में पूछा तो उन्होंने झोपड़ी के कोने में गाड़ देने को कहा।
ऐसा कर बुढ़िया रात को सो गई और गणेश जी उसकी झोपड़ी को लात मारते हुए अंतर्ध्यान हो गए। अगले दिन जब बुढ़िया उठी तो उसे अपनी झोपड़ी महल में बदली हुई और खीर के बर्तन सोने- जवाहरातों से भरे मिले। गणेश जी की कृपा जानकर बुढ़िया काफी प्रसन्न हो गई।
हे गणेश जी महाराज! आपने जैसा फल बुढ़िया को दिया, वैसा सबको देना। कथा कहने वाले व हुंकार भरने वाले और आसपास के सुनने वाले सब के भंडारे भरे रखना।