You are currently viewing शीशे को बदलो पर | Shishe Ko Badlo Par

शीशे को बदलो पर | Shishe Ko Badlo Par

शीशे को बदलो पर | Shishe Ko Badlo Par

जूनागढ मे शिवरात्रि का मेला लगा था। एक वृद्धा मेले में गई। एक दुकान वाला शीशे बेच रहा था। साठ-सत्तर वर्ष की थी वृद्धा। उन्होंने कीमत पूछी,”यह शीशे की कीमत क्या?” “एक रुपया।”
“इसका एक रुपया? लूटने बैठा है। कलियुग आ गया है। पहले तो लोग चार आने में देते थें। तब कितना अच्छा चेहरा दिखाई देता था? इसमें चेहरा ठीक कहाँ दिखाई देता है?”
दूसरा बडा शीशा जरा ज्यादा कीमती था। वृद्धा ने उसकी कीमत पूछी। वह बोला,”पाँच रुपये।”
“पाँच हो सकते है इनके?”
सात-आठ शीशे बताये। सबकी कीमत एक से बढकर एक। वृद्धा ने सब नापसन्द किये। ऐसे शीशे? इसमें चेहरा ठीक दिखाई ही नहीं देता। कैसे शीशे है?
उसने कहा,”माँ! ठीक चेहरा दिखाई देने वाली बात, आप कितने साल पहले की बात कह रही है?”
वृद्धा बोली,”जब मैं पच्चीस साल की थी न!”
“तब तो सबके चेहरे ठीक दिखाई देते होंगे पर अब सत्तर साल की उम्र में आप जितने भी शीशे बदलो पर चेहरा ठीक नहीं दिखाई देगा।”

Share this post (शेयर करें)