You are currently viewing प्रशंसा । Pranshasa

प्रशंसा । Pranshasa

प्रशंसा । Pranshasa

शिल्पकार था। वह बहुत सुन्दर मूर्तियां बनाता था।
उसे एक ज्योतिषी मिला। उसने शिल्पी से कहा,”बराबर एक महीने बाद इसी तारीख, इसी समय तेरी मृत्यु होगी।”
हमें कोइ मौत की तारीख दे तो कितनी परेशानी हो जायें! शिल्पी बैचेन हो गया। एक महिनें के बाद मृत्यु! क्या करूँ?
एक सज्जन आदमी उसे मिला। वह बैचेन होकर कहने लगा,”एक महीने बाद इसी तारीख, बारह बजे मेरी मृत्यु है। मैं क्या करूँ?”
“ज्योतिषी का कहना सत्य तो पडेगा। परंतु आप एक काम करो। आप शिल्पी हो न? “
“हाँ।”
“बिलकुल अपने जैसी आठ मूर्तियाँ बनाओ ।”
“फिर ?”
“अपनी मृत्यु के समय से पहले चार मूर्तिं दायीं खड़ी कर देना और चार मूर्ति बायीं ओर खेडी कर देना। बीच में आप मर्ति के समान खड़े रहना। यमदूत लेने आयेंगे तो मूर्तियों में से आपको पहचान नहीं पायेंगे। किसी और को हाथ लगा देंगे तो आप बच जाओगे। समय बीतने के बाद सब खत्म। फिर वह आपका कुछ नहीं कर सकते। समय चुका दो।”
शिल्पी ने लगातार जागकर अपने जैसी और अपने कद की आठ मूर्तियाँ बनाई।
मृत्यु का दिन करीब आया। बारह बजने में थोडी देर थी तब शिल्पी ने चार मूर्तियाँ दाँयी ओर और चार मूर्तियाँ बायीं ओर रखकर बीच में स्वयं स्थिर खड़ा रह गया।
शिल्पी ने इतनी उत्तम मूर्तियाँ बनाई थी कि उन नौ में कौन मूर्ति ओर कौन जीवित यह ब्रह्मा भी जानने में शक्तिमान नहीं थे।
ठीक बारह बजे यमराज के दूत आये। परन्तु यमदूत चकरा गये। यह तो एक समान नौ! किसको ले जायें? जिसको ले जाना हो उसके बदले किसी और को ले गए तो यमराज हम पर गुस्से होंगे।
ऐसा तो पहली बार देखा। पर किसको ले जायें यह समझ में नहीं आ रहा है। पहली बार जगत में ऐसा हुआ कि यमराज के दूत वापस चले गये, बिना जीव लिए यमराज को सब बात बताई ।
यमराज शिल्पी के घर गये और देखकर चकित रह गये। फिर ब्रह्मा को बुलाकर कहा, “महाराज, ऐसा नहीं करना। एक समान नौ आदमी बनाओगे तो मृत्यु किसे दें?”
ब्रह्माजी का दिमाग चक्कर खा गया। मैंने एक समान नौ आदमी बनाये ही नहीं है, तो कौन है जो मुझसे आगे निकल गया?”
ब्रह्मा भी थक गये। परमात्मा से बात की| साथ में भगवान आये। वे चक्कर में पड गये ‘ओह, नौ के नौ एक समान।’ भगवान ने एक बार परिक्रमा की। फिर भगवान ब्रह्माजी से कहने लगे, “ब्रह्माजी! अच्छी मर्तियाँ बनी हैं। मैं जगत का सर्जक हँ। क्योंकि मैं आपका सर्जन करता हूँ। आप जग का सर्जन करते हो। आप मानते हैं कि मैं जगत का सर्जक हूँ, पर यह तो हमसे भी महान सर्जक है। यह मूर्ति बनाने वाला दिखाई नहीं देता। जो वह हाजिर हो तो मेरा विचार उसके पाँव पडने का है। कौन होगा इसका शिल्पी?”
तभी वह शिल्पी अपनी प्रशंसा सुनकर फुला समाया और बोला, “मैं!”
प्रभु ने कहा, “चल बेटा।”

Share this post (शेयर करें)