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हराम को छोड । Haram Ko Chhod

हराम को छोड । Haram Ko Chhod

एक दिन गाँधीजी सायंकाल की प्रार्थना करने के लिए बिरला मन्दिर जा रहे थे। रास्ते में एक भाई ने हाथ जोडकर बापू से कहा,”बापू, आप राम-नाम की प्रार्थना करने जा रहे हो तो मेरे एक प्रश्न का उत्तर देते जाओ। बापू! मैं जब जब रामनाम की प्रार्थना करता हूँ तब मेरे मन में विप्लव होने लगता है। तभी गलत विचार मझे सताते हैं। अनेक गन्दे कार्य करने के लिए मन तरसता हैं इतना मानसिक खिंचाव उत्पन्न होता हैं कि बापू! मन कहता है, राम-नाम छोड दूँ। क्या करूँ?
गाँधीजी ने बहुत सुन्दर जवाब दिया, “भाई! तझे छोड़ना ही हैं तो हराम को छोड। राम को छोडने का विचार क्यों करता है? प्रकाश की किरणें आते ही अन्धकार के जीवों भागदोड मचा देते है। उससे क्या घबराना? धीरज रख। अंत में सत्य की विजय ही होती है।”

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