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बच्चें और दादी | Bache Aur Dadi

बच्चें और दादी | Bache Aur Dadi

गरु गोविन्दसिंहजी अपने दोनों बालकों को हृदय से लगाकर कहते हैं, “बेटा, हुक्म हो गया है। धर्मान्तर न करे तो आप दोनों के मस्तक काट दिये जायेंगे।” बालकों ने कहा, “पिताजी, धर्मान्तर यदि रूकता हो तो भले हमारे मस्तक कट जायें।” गोविन्दसिंहजी की आँखों में आंसू आ गए। बालकों ने कहा, “पिताजी रोना मत।”
बालकों को जीवित दीवार में चिनवा देने की तैयारियाँ होने लगीं। करुणा कैसी थी! कष्ट देने वाले कष्ट देते समय पीछे मुड़कर देखते भी नहीं थे। गुरु गोविन्दसिंहजी की वृद्ध माता अर्थात् बच्चों की दादी झरोखें में खडी है। उनकी नजर के सामने उनके दो पोतों को जीवित चिनवाया जा रहा है। कल्पना करें उस माँ की क्या दशा होगी!
गरु गोविन्दसिंह को पकड़कर खड़े हैं। भारत के दो फूलों को चिनवाने के लिए ईंट-चूना लाया गया। दीवार चिनने लगी। ईंट होंठ तक आई सांस घुटने लगा। एक ईंट आगे रखे तो!
गोविन्दसिंहजी देख रहे है। नाक के सामने ईंट आने की तैयारी है। दोनों बालक दादी माँ को देख रहे हैं। आँखें मिलीं। पता नहीं क्या हुआ कि दीवार गिर गई। हैरानी हुई कि ऐसा कैसे हुआ? फिर ईंट चूना लाये गये। पर होंठ तक ईंट आये। नाक के पास ईंट रखे। बालकों की चार आँखे माँ को देखे, माँ की ममताभरी आँख बालक को देखे और जैसे ही हाथ ऊँचा करे तो सारी ईंटे नीचे गिर पडे। ऐसे तीन बार हुआ। हुक्म दिया कि दादी माँ की बालकों के सामने आँखें मिलेंगी तो दीवार नहीं बनेगी। इनके सिर काट दो।
ऐसा कहा जाता हैं कि क्रूर हाथों ने खडग खींचा और बालकों के गर्दन पर आक्रमण किया। उसी क्षण प्रभु का स्मरण करते-करते गोविन्दसिंह की माँ झरोखे से गिर पडी। एक ओर बालकों का देहान्त हुआ और दूसरी ओर माँ का देहान्त हुआ। कुर्बान हो गये पर धर्मान्तर नहीं किया।

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