मन-आत्मा की तकरार । Man-Aatma Ki Takrar
एक भिखारी रास्ते पर बैठकर भीख माँग रहा था। एक आदमी वहाँ से निकला। भिखारी ने कहा,”मैं बहुत भूखा हूँ। मुझे कुछ दो।”
उस आदमी की जेब में चने थे। अतः उसने मुठ्ठी भर चने उस भिखारी को दिए। भिखारी ने हाथ में चने लिए। वह आदमी आगे चल दिया। भिखारी ने देखा कि चने के साथ एक चमकती सोने की गिन्नी आ गई है। भिखारी खुश हुआ। उसने सोचा कि,”आज बहुत अच्छा दिन है।” परंतु अंतरात्मा उसे रखने की मनाही करता है: “नहीं, तेरे से सोना नहीं रखा जा सकेगा।”
सारी रात मन और आत्मा के बीच तकरार होती रही। सुबह भिखारी बहुत परेशान हो गया। दूसरे दिन नियंत जगह आकर बैठ गया।
जब वह आदमी वहाँ से निकला। तब भिखारी खड़ा होकर बोला, “साहब, आपने अच्छा किया, जो यहाँ से निकले। आपने कल मुझे चना दिए थे उस में एक सोने की गिन्नी आ गई थी, यह आप वापस ले लो।”
वह आदमी बोला, “मुझे कुछ पता नहीं है। इसलिए मैं नहीं लूँगा।”
भिखारी ने कहा, “नहीं, आप यह गिन्नी ले लो। इसने मेरे घर तकरार मचा रखी है।”
वह व्यक्ति बोला,”आप भिखारियों का कौन सा घर? तकरार किसके साथ?”
भिखारी ने कहा,”नहीं, मेरी देह की घर है। तकरार मन और आत्मा के बीच है। मैंने खाना माँगा था। आपने चने दिए। पर साथ में भूल से गिन्नी आ गई। वह रखूँ तो लूट कहा जायेगा।”
अनीति सुख दे सकती है, शान्ति नहीं दे सकती। जिसे शान्ति चाहिए उसे सत्य की राह पकडनी चाहिए।