फाल्गुन अमावस्या व्रत कथा | Phalgun Amavasya Vrat Katha
फाल्गुन अमावस्या को शनैश्चरी अमावस्या भी कहा जाता है। जो व्यक्ति फाल्गुन अमावस्या के दिन व्रत रखता है उसके जीवन में कोई समस्या नहीं आती है और सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है। इस दिन पितरों का पूजन करने का भी विधान है। अमावस्या पर पितरों का पूजन करने से उनका आशीर्वाद मिलता है और उनकी आत्मा को शांति मिलती है। मान्यताओं के अनुसार, आज के दिन गंगा में डुबकी लगाने और दान करने से कई गुना पुण्य फल की प्राप्ति होती है।फाल्गुन अमावस्या के दिन शिव पंचाक्षरी मंत्र का पाठ किया जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस दिन यह पाठ करने से शनि के प्रकोप का भय नहीं रहता और सारी बाधाएं दूर हो जाती हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार दुर्वासा ऋषि के श्राप की वजह से इंद्र और अन्य देवता कमजोर हो गए और उन्हें दैत्यों से हार प्राप्त हुई। तब सारे देवता मिलकर भगवान विष्णु के पास गए और अपनी बात उनके सामने रखी। भगवान विष्णु ने उन्हें यह सलाह दी कि वह व्यक्तियों के साथ मिलकर क्षीरसागर का मंथन करके अमृत निकालें। तब सब देवताओं नेताओं के साथ संधि कर ली और अमृत निकालने के लिए मंथन शुरू कर दिया। अमृत कुंभ के निकलते ही देवताओं के इशारों पर इंद्र के पुत्र जयंत ने अमृत कलश लेकर आकाश में उड़ान भर ली। उस समय दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने दैत्यों को आदेश दिया कि वह अमृत वापस लेने के लिए जयंत का पीछा करें। दैत्यों ने ऐसा ही किया और जयंत को रास्ते में ही पकड़ लिया। अमृत कलश पर अधिकार जमाने के लिए दोनों तरफ से 12 दिन तक युद्ध चलता रहा। इस युद्ध के दौरान पृथ्वी के चार स्थानों प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन तथा नासिक एवं गंगा यमुना के संगम पर कुछ अमृत की बूंदे गिरी, जिससे यह सारे तक पवित्र हो गए। तभी से फाल्गुन अमावस्या के दिन इन स्थानों पर स्नान करना शुभ माना जाता है।