घटोत्कच की कहानी | Ghatotkacha Ki Kahani
घटोत्कच महाभारत के प्रमुख पात्रों में से एक है। कुंती के पुत्र भीम का राक्षस पुत्र घटोत्कच था।
जब सभी पांडव लाक्षागृह की आग से बच निकलने के बाद अपनी माता कुंती के साथ छिपते हुए वन में चले गए. उस वन में हिडिंबासुर नाम का राक्षस अपनी बहन हिडिंबा के साथ रहता था. हिडिंबा ने जब भीम को देखा तो उसको भीम से प्रेम हो गया. तभी हिडिंबासुर भी वहां आ गया. युद्ध में भीम ने उसका वध कर दिया. कुंती के कहने पर भीम ने हिडिंबा से विवाह कर लिया. कुछ समय बाद भीम और हिंडिबा के मिलन से एक महापराक्रमी बालक पैदा हुआ. वह क्षणभर में ही बड़े-बड़े राक्षसों से भी बढ़ गया और तुरंत ही जवान हो गया. घटोत्कच के सिर पर बाल नहीं थे. घटोत्कच का नाम सिर पर बाल नही होने के कारण घटोत्कच पड़ा था. भीम और हिंडिबा ने उसके घट अर्थात सिर को उत्कच यानी केशहीन देखकर उसका नाम घटोत्कच रख दिया.
घट-हाथी का मस्तक + उत्कच= केशहीन
महाभारत युद्ध के समय जब भगवान इंद्र छलपूर्वक महारथी कर्ण से उनके कवच और कुंडल का दान प्राप्त करते हैं और महारथी कर्ण सारी सच्चाई जानते हुए, भी अपने दानी आचरण का पालन करते हुए, बिना अपने प्राणों की परवाह किये, उन्हें कवच और कुंडल दान कर देते हैं तो भगवान इंद्र बहुत खुश होते हैं और महारथी कर्ण को वरदान स्वरुप एक दिव्य अस्त्र प्रदान करते हैं, जिसका वार कभी खाली नहीं जाता, परन्तु महारथी कर्ण द्वारा इस दिव्यास्त्र का एक ही बार उपयोग किया जा सकता हैं.
जिस दिन महारथी कर्ण द्वारा पांडु पुत्र अर्जुन को मारने की योजना बनाई जाती हैं, तो इसका पता भगवान श्रीकृष्ण को चल जाता हैं और वे समझ जाते हैं कि महारथी कर्ण उस दिव्यास्त्र का प्रयोग अर्जुन के प्राण लेने में करेंगे, तब वे इसका उपाय ढूंढते हैं. भगवान श्रीकृष्ण भीम को अपने पुत्र घटोत्कच को युद्ध में सहायता करने के लिए बुलाने को कहते हैं और भीम अपनी हारती हुई सेना को बचाने के लिए घटोत्कच का आव्हान करते हैं. भीम द्वारा घटोत्कच का नाम जैसे ही 3 बार पुकारा जाता हैं, वैसे ही घटोत्कच अपने पिता भीम के सामने प्रकट हो जाता हैं. तब भीम, आदि उसे युद्ध में उन पर आये संकट के बारे में बताते हैं और उससे सहायता करने के लिए कहते हैं. तब घटोत्कच युद्ध भूमि में पहुँच कर कौरवों की सेना को ख़त्म करने लगता हैं और चूँकि वह राक्षस हैं तो मनुष्यों का कोई भी अस्त्र – शस्त्र उसका कुछ बिगाड़ नहीं पाता. घटोत्कच के युद्ध भूमि में आने से कौरवों को अपनी विजय, पराजय में बदलती हुई प्रतीत होती हैं और वे उसके विनाश से भयभीत हो जाते हैं. इस सभी परिस्थितियों को देखते हुए दुर्योधन अपने मित्र महारथी कर्ण से भगवान इंद्र द्वारा वरदान स्वरुप दिए गये दिव्य अस्त्र का घटोत्कच पर प्रयोग करने के लिए विवश करते हैं और महारथी कर्ण को ना चाहते हुए भी उस दिव्य अस्त्र का प्रयोग घटोत्कच पर करना पड़ता हैं और इस प्रकार भीम का पुत्र घटोत्कच युद्ध में वीरगति को प्राप्त करते हुए भूमि पर धराशायी हो जाता हैं.
इस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण की योजनानुसार घटोत्कच, अपने काका अर्जुन के प्राणों की रक्षा के लिए स्वयं के प्राणों का बलिदान दे देता हैं.
घटोत्कच का विवाह दिति के पुत्र मूर की कन्या कामकटंककटा मोरवी से हुआ था और उनके तीन पुत्र हुए उनमें सबसे बड़ा पुत्र बब्बर शेर जैसे बालों वाला था इसलिए उसका नाम बर्बरीक रखा गया अन्य दो पुत्रों के नाम अंजनपर्व और मेघवर्ण रखे गए।