चन्द्र दिपै सूरज दिपै, उड़गण दिपै आकाश ।
इन सब से बढकर दिपै, माताऒ का सुप्रकाश ॥
मेरा अपना कुछ नहीं, जो कुछ है सो तोय ।
तेरा तुझको सौंपते, क्या लगता है मोय ॥
पद्म कमण्डल अक्ष, कर ब्रह्मचारिणी रूप ।
हंस वाहिनी कृपा करे, पडूँ नहीं भव कूप ॥
जय जय श्री ब्रह्माणी, सत्य पुंज आधार ।
चरण कमल धरि ध्यान में, प्रणबहुँ बारम्बार ॥