तुलसी मंत्र | Tulsi Mantra
तुलसी के पत्ते और मंजरियाँ तोड़ने का मंत्र :-
“ओम तुलसी अमृत-जन्मसी
सदा त्वं केशव-प्रिया
केशवार्थं सिनोमि त्वं
वरदा भव-शोभने”
अर्थ :-
- ॐ तुलसी अमृत-जन्मसि – हे तुलसी माता! आप अमृत से उत्पन्न हुई हैं।
- सदा त्वं केशव-प्रिया – आप सदा भगवान केशव (श्रीकृष्ण/विष्णु) की प्रिय हैं।
- केशवार्थं सिनोमि त्वां – मैं आपको भगवान केशव के पूजन के लिए अर्पित करता हूँ।
- वरदा भव शोभने – हे शोभायमान देवी! कृपया वर प्रदान करने वाली बनें।
कब बोले :-
- तुलसी के पत्ते तोड़ते समय – क्योंकि तुलसी माता को बिना मंत्र के तोड़ना अशुभ माना जाता है।
- तुलसी रोपण या बीज बोने के समय – ताकि पौधे में दिव्यता आए।
- विष्णु/कृष्ण पूजा में तुलसी दल अर्पण करते समय – यह सबसे सामान्य उपयोग है।
महत्व:-
- इस मंत्र से तुलसी माता प्रसन्न होती हैं और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है।
- पवित्रता, स्वास्थ्य और समृद्धि का वास होता है।
- पापों का नाश और पुण्य की वृद्धि होती है।
क्षमा के लिए प्रार्थना:-
“सायनोद्भव-दुःखं च
यद् हृदि तव वर्तते
तत् क्षमास्व जगन्मते
वृन्दा-देवि नमोऽस्तु ते”
यह तुलसी माता / वृन्दा देवी से क्षमा प्रार्थना का मंत्र है, जो विशेष रूप से तुलसी दल तोड़ने के बाद बोला जाता है।
अर्थ :-
- सायनोद्भव-दुःखं च – (हे तुलसी माता) जब मैं आपको तोड़ता हूँ, तो इससे जो कष्ट आपको होता है,
- यद् हृदि तव वर्तते – और जो पीड़ा आपके हृदय में आती है,
- तत् क्षमास्व जगन्मते – हे जगत की माता! कृपया उसे क्षमा करें।
- वृन्दा-देवि नमोऽस्तु ते – हे वृन्दा देवी! आपको मेरा प्रणाम।
कब बोले :-
- तुलसी के पत्ते तोड़ने के तुरंत बाद।
तुलसी माता को तोड़ते समय उन्हें पीड़ा होती है, इसलिए यह मंत्र बोलकर उनसे क्षमा माँगी जाती है। - विशेष रूप से श्रीकृष्ण / विष्णु पूजा के लिए तुलसी दल लेने पर।
महत्व :-
- यह मंत्र तुलसी माता के प्रति सम्मान और संवेदना दर्शाता है।
- उनके आशीर्वाद से पूजा का फल कई गुना बढ़ जाता है।
- यह भाव भक्ति और क्षमा की भावना को प्रकट करता है, जो वैष्णव परंपरा में बहुत महत्वपूर्ण है।