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तोते का श्राप | Tote Ka Shrap

तोते का श्राप | Tote Ka Shrap

कथा के अनुसार,माता सीता बाल्यावस्था में अपनी सहेलियों के साथ बगीचे में खेल रही थीं,वहीं बगीचे में एक तोता का जोड़ा पेड़ पर बैठा था। तोता का जोड़ा भगवान राम और माता सीता के बारे में बातें कह रहा था, उनकी बातों को सुनकर माता का ध्यान उन पर गया। मादा तोता बोल रही थी कि अयोध्या के राजकुमार राम काफी प्रतापी राजा होंगे, उनसे माता सीता का विवाह होगा। तोते के मुख से भावी पति का नाम सुनकर माता सीता अंचभित हो गईं, उन्हें अपने बारे में और जानने की इच्छा जागृत हुई इसलिए उन्होंने अपनी सखियों से कहकर दोनों पंक्षियों को पकड़ लिया और फिर उन दोनों को पुचकारक पूछा कि भविष्य के बारे में इतना ज्ञान कहां से प्राप्त हुआ। तब पंक्षियों ने बताया कि इससे पहले हम महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में रहते थे, जहां हर रोज राम और सीता के जीवन के बारे में बताया जाता है। इसलिए उनको दोनों के बारे में हर चीज कंठस्थ याद हो गई।
सीताजी के सवालों के जवाब देते रहे तोतों का जोड़ा
सीताजी ने पंक्षियों से कहा कि जिस जानक पुत्री सीता की तुम लोग बात कर रहे हो, वह मैं ही हूं। मुझे मेरे और राम के बारे में और भी बातें जाननी हैं। तब नर तोता ने कहा कि हे सीता आपका विवाह अयोध्या के राजा दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र राम के साथ आपका विवाह होगा और आपकी जोड़ी तीनों लोकों में सबसे अद्भुत होगी। सीताजी सवाल पूछती रहीं और दोनों तोता जवाब देते रहे। ऐसे में सीता जी प्रसन्न हो गई और कहा कि अब ये हमारे साथ ही यहां पर रहेंगे, लेकिन ये सुनकर तोता हैरान रह गया औऱ उसने कहा कि हम पंक्षी हैं हमें पिंजरे में कैद ना करो। तोते ने इसके लिए बहुत याचना कि तब सीताजी ने नर तोते को छोड़ दिया लेकिन मादा तोता को नहीं छोड़ा और कहा कि यह मेरे साथ रहेगी।
तोता ने दिया माता सीता को शाप
नर तोता ने कहा कि मेरी पत्नी गर्भवती है इसलिए ऐसे समय पर उसको जानें दें। हम दोनों एक-दूसरे का वियोग सहन नहीं कर सकते इसलिए आप मेरी पत्नी को जानें दें, लेकिन सीताजी ने उसकी एक न सुनी। इस पर मादा तोता को बहुत गुस्सा आया और शाप दिया कि जिस तरह तुमने गर्भावस्था में मेरे पति से मुझको अलग कर दिया है, वैसे ही गर्भावस्था के दौरान तुमको भी पति वियोग सहना पड़ेगा। इतना कहते ही मादा तोता ने अपने प्राण त्याग दिए. बताया जाता है कि अगले जन्म में तोता वही धोबी था, जिसने माता सीता के चरित्र पर उंगली उठाई थी, जिसके बाद भगवान राम ने सीता का गर्भावस्था के दौरान त्याग कर दिया।

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