नवरात्रि व्रत कथा | Navratri Vrat Katha
ब्रह्माजी से देवगुरू बृहस्पति ने नवरात्रि के व्रत की कथा और पूर्व समय में इस व्रत को किसने किया उसकी कथा सुनाने का निवेदन किया। तब ब्रह्मा जी ने बृहस्पति जी से कहा, “ हे बृहस्पते! मैं तुम्हे इस परम दुर्लभ और कल्याणकारी नवरात्रि व्रत की कथा और इसका इतिहास सुनाता हूँ, तुम ध्यान से सुनना। तब बृहस्पति जी ने कहा, “ हे प्रभु! आप कथा सुनाइये मैं पूरे ध्यान से सुनुँगा।“
तब ब्रह्माजी ने कथा सुनाते हुये कहा, अति प्राचीन काल में पीठत नाम का एक बहुत सुंदर नगर था। उस नगर में एक ब्राह्मण निवास करता था। वो माँ दुर्गा का अनन्य भक्त था। वो प्रतिदिन माँ दुर्गा का हवन और पूजन किया करता था। माँ भगवती की कृपा से उसके यहाँ एक कन्या का जन्म हुआ। उसकी पुत्री बहुत ही रूपवती और गुणवान थी। उस कन्या का नाम सुमति रखा गया। वो कन्या अपने पिता के घर वृद्धि को प्राप्त हुई। जब वो ब्राह्मण माँ दुर्गा का हवन और पूजन करता, उसकी कन्या भी नियमित रूप से वहाँ उपस्थित रहती। यह देखकर उस ब्राह्मण को बहुत प्रसन्नता होती।
एक दिन वो कन्या अपनी सखियों के साथ खेलने में इतनी मगन हो गई, कि उसे यह ध्यान ही नही रहा कि उसे हवन और पूजन के लिये घर पहुँचना है। अपनी पुत्री को हवन-पूजन के लिये ना आया देखकर उस ब्राह्मण को बहुत क्रोध आया। जब उसकी पुत्री सुमति घर आयी तो उसे अपने पिता के क्रोध का सामना करना पड़ा। उस ब्राह्मण ने क्रोधवश अपनी पुत्री से कहा, “तूने मेरी पुत्री होकर पूजा का नियम तोड़कर बहुत बड़ा अपराध किया हैं। तुझे इसका परिणाम भुगतना होगा। मैं तेरा विवाह एक निर्धन कोढ़ी से करूँगा। उसके साथ जब तू दुखों का अनुभव करेगी, तब तुझे अपने अपराध का बोध होगा।“ अपने पिता की ऐसी बातें सुनकर सुमति ने अपने पिता से कहा, “पिताजी मैं आपकी बेटी हूँ, और आपके अधीन हूँ। आप जो चाहे निर्णय ले सकते हैं। मेरे भाग्य में जो होगा मुझे वही मिलेगा। मनुष्य तो बहुत कुछ चाहता और सोचता है, परंतु उसे वही मिलता हैं, जो उसके भाग्य में होता हैं। मनुष्य को अपने कर्मों के अनुसार फल मिलता हैं। मनुष्य के वश में सिर्फ कर्म करना होता हैं, उसका फल ईश्वर के अधीन हैं।“
अपनी पुत्री की ऐसी बातें सुनकर उस ब्राह्मण का क्रोध और बढ़ गया। और उसने जल्द ही एक निर्धन कोढ़ी से अपनी पुत्री का विवाह करा दिया और उसे अपने घर से यह कहकर निकाल दिया, कि जा लेले जो तेरे भाग्य में लिखा हैं, भोग अपने कर्मों का फल। अपने पिता द्वारा किये गये इस तिरस्कार से सुमति बहुत दुखी हुई। भटकते-भटकते अपने पति के साथ वो एक घने वन में पहुँच गयी। रात्रि में उस भयानक वन में कष्ट सहते हुये उस कन्या ने दुखी होकर माँ भगवती का ध्यान किया। उस दुखिया की पुकार सुनकर और उसके पूर्व जन्म के पुण्यों के प्रभाव से माँ भगवती उसके समक्ष प्रकट हो गई। माँ भगवती ने उससे कहा, मैं तुझपर प्रसन्न हूँ, तू जो चाहे वरदान माँगने लें। सुमति को कुछ समझ नही आया। उसने पूछा आप कौन हैं? और मुझ पर क्यों प्रसन्न हैं? तब माँ ने उसे अपना परिचय दिया और कहा कि, “मैं आदि शक्ति हूँ। मैं ही प्राणियों के दुखों का नाश करती हूँ और उन्हे सुख प्रदान करती हूँ। मैं तेरे पूर्वजन्म में किये गये शुभ कर्म से अर्जित पुण्य के प्रभाव से तुझ पर प्रसन्न हूँ।“ उसने माँ से पूछा, “हे माता ! मैंने पूर्व जन्म में ऐसा कौन सा पुण्य कर्म किया था। जिसके फलस्वरूप मुझ पर आपकी कृपादृष्टि हुई और आप मुझ पर प्रसन्न हुई।“
तब माँ दुर्गा ने उसे उसके पूर्व जन्म की कथा सनाते हुये कहा, ”पूर्वजन्म में तेरा विवाह एक निषाद से हुआ था, जो कि एक चोर था। एक बार वो चोरी करते हुये पकड़ा गया। जब उसे कैद की सजा हुई, तो अपने पतिव्रत धर्म का पालन करते हुये तू भी उसके साथ कारागार में चली गई। वहाँ तुम दोनों को भोजन इत्यादि कुछ भी नही दिया गया। उस समय शारदीय नवरात्रि चल रहे थे। और परिस्थितिवश अंजाने में ही तुमसे नवरात्रि के नौ दिनों के निर्जल व्रत हो गये। उसी व्रत के प्रभाव से मैं तुम पर प्रसन्न हूँ। तुम जो चाहों वरदान माँग सकती हो। तब उस ब्राह्मणी ने माँ दुर्गा को प्रणाम किया और कहा, “हे माँ दुर्गे! आप मुझ पर प्रसन्न हैं, तो कृपा कर के मेरे पति के कोढ़ को दूर कर दीजिये।“ माँ ने कहा, “तथास्तु”। और उसके पति का कोढ़ ठीक हो गया और वो अत्यंत रूपवान हो गया। यह देखकर सुमति ने माँ को बारम्बार धन्यवाद दिया और सच्चे मन से उनकी स्तुति करी। उसके भक्ति युक्त वचन सुनकर माँ दुर्गा ने प्रसन्न होकर उसे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया। और कहा, “हे पुत्री! तुझे शीघ्र ही एक पुत्र प्राप्त होगा, वो बहुत ही बुद्धिमान, धनवान, कीर्तिवान और जितेन्द्रिय होगा। तुम उसका नाम उद्दालक रखना।“
माँ दुर्गा के आशीर्वाद को सुनकर सुमति की आंखों से अश्रु बहने लगें। उसने कहा, “हे माँ, मैं तो इस भयानक वन में अपने कोढ़ी पति के साथ अपने दुर्भाग्य को कोस रही थी। आपकी कृपा से मेरे दुखों का नाश हो गया। इस विपत्ति के सागर से आपने ही मुझे निकाला हैं।“ तब माँ दुर्गा ने उससे कहा, “हे पुत्री! अभी तू मुझसे और भी वरदान माँग सकती हैं। जो चाहे माँग ले।“ तब सुमति ने कहा, “हे माँ! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हो और मुझे मनोवांछित वर देना चाहती हो, तो मुझे अपनी भक्ति प्रदान करों। मुझे नवरात्रि के व्रत एवं पूजन की विधि बताइये जिसके पालन करने आप प्रसन्न होती हैं। मुझे उसकी विधि और फल पूरे विस्तार से बताइये।“
तब माँ दुर्गा ने सुमति को कहा, “हे पुत्री! मनुष्य के समस्त पापों का नाश करने वाले नवरात्रि के व्रत का महात्म्य एवं पूजन की विधि मैं तुमसे कहती हूँ। तुम ध्यान से सुनना। इस व्रत का पालन करने से मनुष्य समस्त पापों से छूटकर मोक्ष को प्राप्त करता हैं। शारदीय नवरात्रि (आश्विन मास के शुक्लपक्ष में आने वाले नवरात्रि) की प्रतिपदा से लेकर पूरे नौ दिनों तक विधि विधान से मेरे नौ स्वरूपों का पूजन करें। नौ दिनों तक उपवास करें, यदि उपवास नही कर सकते, तो एक समय भोजन कर सकते हैं। योग्य ब्राह्मण से विधि-विधान के साथ घटस्थापना करायें। पूरे नौ दिन तक मिट्टी में बोये जौ को जल से सींचे। प्रतिदिन महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती की मूर्तियाँ रखकर विधि-विधान से पूजा-अर्चना करें। पूजन में अर्ध्य का विशेष महत्व हैं।
भिन्न-भिन्न सामग्री से अर्ध्य देने के अलग-अलग फल प्राप्त होते हैं।
जैसे-
- बिजौरा के फूल से अर्घ्य देने पर रूप की प्राप्त होता हैं।
- जायफल से अर्ध्य देने से यश और कीर्ति प्राप्त होती हैं।
- दाख से अर्ध्य देने पर कार्यसिद्ध होता हैं।
- आँवले से अर्ध्य देने से सुख की प्राप्ति होती हैं।
- केले से अर्ध्य देने से आभूषणों की प्राप्ति होती है।
- फलों से अर्घ्य देने के बाद विधि पूर्वक हवन करें। घी, गेहूँ, खांड, शहद, तिल, जौ, बिम्ब, नारियल, दाख और कदम्ब से हवन करें।
- गेहूँ से हवन करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती हैं।
- खीर और चम्पा के फूलों से हवन करने से धन की प्राप्ति होती हैं।
- चम्पा के पत्तों से हवन करने से तेज और सुख की प्राप्ति होती हैं।
- आँवले से हवन करने से यश और कीर्ति की प्राप्ति होती हैं।
- केले से हवन करने से पुत्र की प्राप्ति होती हैं।
- कमल से हवन करने से राजकीय सम्मान मिलता हैं।
- दाख से हवन करने से सुख-सम्पत्ति की प्राप्ति होती है।
- खांड, घी, नारियल, शहद, जौ और तिल से हवन करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती हैं।
हवन कराने वाले आचार्य का पूर्ण आदर सत्कार करें और यथासम्भव दक्षिणा देकर उन्हे संतुष्ट करें। इस परम दुर्लभ व्रत का पालन पूरी श्रद्धा-भक्ति और विधि-विधान से करने से मनुष्य के समस्त मनोरथ पूर्ण होते हैं। नवरात्रि के नौ दिनों में दान करने से उसका पुण्य कई गुणा अधिक हो जाता हैं।
माँ भगवती ने सुमति से कहा, “हे पुत्री ! इस व्रत का पालन पूर्ण श्रद्धा-भक्ति और विधि-विधान से अपने निवास, मंदिर या तीर्थ स्थान पर करने से मनुष्य की सारी मनोकामनायें सिद्ध होती हैं। उस ब्राह्मण कन्या सुमति को व्रत का सारा विधान सुनाकर माता अन्तर्ध्यान हो गई।
ब्रह्माजी बोले – “हे बृहस्पते! इस परम पुण्यदायी व्रत को जो भी स्त्री-पुरूष पूरी श्रद्धा-भक्ति से करता हैं, उसे संसार के सभी सुख प्राप्त होते हैं। वो मनुष्य संसार के समस्त सुख भोगकर मृत्यु के उपरांत मोक्ष को प्राप्त करता हैं। ब्रह्माजी से व्रत का महात्म्य जानकर देवगुरू बृहस्पति आनंद से भरकर बोले, “हे परमपिता! आपकी कृपा से मैं इस परम दुर्लभ व्रत का महात्म्य जान सका। यह मेरे लिये अमृत के समान हैं। इसको सुनकर मैं धन्य हो गया।” देवगुरू बृहस्पति के ऐसे वचन सुनकर ब्रह्माजी बोले – “हे बृहस्पति! तुमने प्राणियों के कल्याण हेतु इस दिव्य व्रत को पूछा। तुम धन्य हो।”
दुर्गा मैया की जय