पालक राम-बालक कृष्ण । Palak Ram – Balak Krishan
तुलसीजी और सूरदासजी एक बार इकट्ठे हुए। ब्रजभूमि में दोनों सत्संग कर रहे थे। कई लोग एकत्रित हुए थे। एक ‘सूरसागर’ का ‘शहंशाह और दूसरे ‘रामचरित मानस’ के शहंशाह। दोनों संवाद कर रहे थे। अचानक एक हाथी पागल होकर उस तरफ आया। किसी ने कहा,”भागो, हाथी पागल हो गया है, मार डालेगा, भागो।”
सत्संग करने वाले लोग भाग गये। साथ-साथ सूरदासजी भी भागे। एकतारा एक तरफ, किरताल दूसरी तरफ। सब भाग गये। परन्तु तुलसीजी नहीं भागे। वे वहीं बैठे रहे। हाथी तुलसीजी को प्रणाम करके आदर करता हो ऐसे सैंड ऊँची करता तुलसीजी के पास से निकल गया। हाथी ने उन्हें कुछ भी नहीं किया। हाथी के जाने के बाद सब लोग आ गये। एक सत्संगी सूरदासजी को पकड़ कर लाये और उन्हें वहाँ बिठाया। फिर सत्संगी बोले, “चलो, शुरू करो।”
तुलसीजी को अत्यन्त आश्चर्य हुआ कि हाथी पागल हो गया….
यह सुनकर संसारी लोग तो भागे पर सूरदासजी जैसे संत भी भागे? उन्हें विश्वास नहीं कि उनका भगवान (कृष्ण) उन्हें बचायेगा? वे भागे यह ठीक नहीं कहलाया जा सकता।
नम्रता से उन्होंने पूछा, “महाराज ! अविवेक हो तो क्षमा करना। पर प्रश्न है कि, हाथी पागल हो गया, यह जानकर आप क्यों भागे? संसारी भागें यह ठीक है पर आप जैसे संत भी भाग जायें? मैं बैठा रहा, इसलिए मैं आपसे महान हूँ ऐसा मेरा कहने का अर्थ नहीं है, पर मझे लगता है कि आपके भागने के पीछे आपका कोई हेतु होना चाहिए।”
सूरदासजी बोले, “तुलसी! हाथी पागल हो गया यह जानकर मुझे भाँगना पडा।”
तुलसीजी बोले, “क्यों ? आपको अपने इष्टदेव पर भरोसा नहीं है?”
सूरदासजी ने कहा, “भरोसा तो है, पर मुसीबत यह कि मेरे इष्टदेव बालक मेरा ध्यान रखे यह ठीक नहीं, उल्टे मुझे उसका ध्यान रखना पडता है। आपके इष्टदेव तो धनुर्धारी राम हैं। अतः मुझे विश्वास है कि हाथी आयेगा तो वे बाण से मार डालेंगे। आपके इष्ट तो पालक राम है। पर मेरा इष्ट बालक कृष्ण है।”