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भाद्रपद अमावस्या व्रत कथा | Bhadrapada Amavasya Vrat Katha

भाद्रपद अमावस्या व्रत कथा | Bhadrapada Amavasya Vrat Katha

वैसे तो प्रत्येक माह की अमावस्या बहुत ही खास होती है लेकिन भाद्रपद अमावस्या का विशेष महत्व माना गया है। कहते हैं कि इस दिन पितरों का तर्पण करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है। इस दिन भगवान विष्णु का पूजन करना भी फलदायी माना गया है। साथ ही अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ की पूजा करने से सभी देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है। अमावस्या के दिन गंगा नदी में स्नान करना शुभ माना गया है लेकिन यह संभव न हो तो नहाते समय पानी में थोड़ा सा गंगाजल मिला लें। स्नान के बाद पीपल के पेड़ की जड़ में जल चढ़ाएं। शाम के समय पीपल के पास सरसों के तेल का दीपक जलाएं। इससे पितर प्रसन्न होकर अपना आशीर्वाद देते हैं।
एक गांव में एक ब्राह्मण और एक ब्राह्मणी रहते थे। वे दोनों भगवान के भक्त थे, उनके घर में सब कुछ था। लेकिन उनके कोई संतान नहीं थी। और वे दोनों संतान ना होने से बहुत दुखी रहते थे। एक दिन ब्राह्मण ने ब्राह्मणी से वन में तपस्या करने के लिए जाने को कहा। और वह ब्राह्मण भगवान पर भरोसा करके वन में चला गया।
जंगल में जाकर वह ब्राह्मण तप करने लगा। और उसे तप करते हुए बहुत वर्ष बीत गए। इस दौरान एक दिन उसे वैराग्य हो गया। और उसने सोचा कि अब अपना जीवन समाप्त कर लूं। ऐसा विचार कर वह अपना जीवन समाप्त करने के उद्देश्य से एक पेड़ की डाली पर फांसी का फंदा बनाकर मरने को तैयार हो गया। और तब ब्राह्मण को ऐसा करते देख सुख अमावस्या प्रकट हुई। और ब्राह्मण को मरने से रोकते हुए बोली कि हे ब्राह्मण तुम्हारे भाग्य में सात जन्मों तक कोई संतान नहीं लिखी है। किन्तु मैं तुम्हें दो कन्या का वरदान देती हूं। तुम एक कन्या का नाम अमावस्या और दूसरी कन्या का नाम पूनम रख देना। और अपनी ब्राह्मणी को कहना कि सुख अमावस्या का नियमित व्रत या उपवास करे।
अमावस के दिन एक कटोरी चावल लेकर उसमें दक्षिणा रखकर किसी मंदिर में रख दें। इस नियम का पालन लगातार एक वर्ष तक करे। एक कटोरी चावल समेत दान करते रहना।
सुख अमावस्या से ऐसा वरदान पाकर ब्राह्मण घर आया। और उसने सारा वृतांत अपनी पत्नी को बताया। तथा अमावस्या के दिन ब्राह्मणी ने व्रत रखा। कुछ दिन बाद उस ब्राह्मण के घर में दो कन्याओं का जन्म हुआ। तब ब्राह्मण ने एक कन्या का नाम अमावस और दूसरी कन्या का नाम पूनम रखा।
धीरे-धीरे कन्याओं के बड़ी होने पर ब्राह्मण ने उन कन्याओं का विवाह किया। बड़ी बहन अमावस बहुत धार्मिक प्रवृति की थी, जबकि उसकी छोटी बहन भगवान का बिलकुल भी ध्यान नहीं करती थी। बड़ी बहन के घर में तो सुख, समृद्धि और वैभव के भंडार भरपूर थे। पर छोटी बहन पूनम के दुख कम नहीं थे।
जब बड़ी बहन अमावस को छोटी बहन के बारे में सब मालूम हुआ कि उसकी बहन दुखी है तब अमावस्या गाड़ी में सामान भरकर छोटी बहन के घर गई। और कहा कि छोटी बहन पूनम सुख अमावस का व्रत तुम भी करो। और पूजा करके उपवास करो। ऐसा करने से तुम्हारे घर में सुख, समृद्धि का भंडार भर जाएगा। एक वर्ष तक चावल का कटोरा भरकर दक्षिणा समेत दान करो।
पूनम ने ऐसा ही किया। तो कुछ दिन बाद उसके भी घर में धन धान्य और संतान की वृद्धि होने लगी। इस प्रकार जो भी सुख अमावस्या का व्रत विधि पूर्वक करता है उसके घर में भंडार सुख अमावस की कृपा से भर जाता है।

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